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कार साकार बे, ध्यानथी कर्मों जाय. ॥ १ ॥ अरिदंत आदि ध्ययमां, मन एकाग्र प्रधान; यातां क्षायिकभावथी, प्रगटे केवलज्ञान ॥ २॥ चार प्रकारे ध्यान बे, आत्म शुद्धि करनार; ध्यानथी प्रभुमय जतां प्रगटे प्रभु निर्धार ॥ ३ ॥
सांजळशो मुनि संयम रागे उपशम श्रेणि चढियारे. ए राग.
धन्य महावीर जिन उपकारी, जगमांही जयकारीरे; ध्यान धरीने केवल पामी, मुक्तिवर्या सुखकारीरे. धन्य० ॥१॥ सर्व प्रकारनां ध्यान प्रकाश्यां, उपदेश्यां नरनारीरे; आर्त रौद्रने धर्म शुकल चउ, समजो गुरुगम धारीरे. धन्य० ॥ २ ॥ पिंस्थने पदस्थने ध्यावो, रूपस्थथी लय लावोरे; रुपातीतना ग्याने केवल - ज्ञानने क्षणमां पावोरे. धन्य० ॥ ३ ॥ ध्येयमां अंतर्मुहूर्त ध्यानज. यातां जीवन्मुक्तिरे; आत्मानंद रसोदधि प्रगटे, विषयोमां न आसक्तिरे. धन्य० ॥ ४ ॥ अंतर्मुहूरत ध्यान प्रतीते, आत्म समाधि प्रगटेरे; खातां पीतां कार्य करंतां, शुद्ध
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