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निज हृदयनी, पामे शिवपुर ठाम ॥ २ ॥ नव पदनी दिल धारणा, धरतां केवलज्ञान; बाह्यांतर त्राटक भळे, धारणमां गुणखाण. ॥ ३ ॥
सनेही संत ए गिरि सेवो. ए राग.
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द्रव्य भावथी धारणा धरीए, प्रभु महावीर दिलमां स्मरीए अन्य परिणतिने परिहरिए, निज तम शुद्धता करीए; प्रभु महावीरने दिल धरीए, एव धारणाए प्रभु वरोए. प्रभु० ॥ १ ॥ प्रभु ध्येयनी धारणा धारो, पट चक्रोमां निर्धारी; प्रभु धारणमां मन वाळो, तेथी घटमां थतो उजियारो. प्रभु० ॥ २ ॥ बाह्य आंतर त्राटक करीए, दुर्ष्यानने झट परिहरीए; उपयोगे रहीए फरीए, प्रभुमय थै प्रजुने वरी. प्रभु० ॥ ३ ॥ प्रभु महावीरमां मन राखो, मुखे महावीर नामने भाखो; मोह शत्रुने मारी नाखो, आतम आनंद रस चाखो. प्रभु ॥ ४ ॥ प्रभु महावीरमय थे जाशो, बीजुं सघलुं भूली जाशो;
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