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ओनी सहाय छंडीने समकिती देवदेवीओनी सहाय पामी शके.- सम्म. दिही देवा दिंतु समाचि बोहिं च ( वंदितासूत्र ) ए वाक्यथी श्रावको सम्यग्दृष्टि देवोने कहाँ छे के हे सम्यग्दृष्टि देवो ! अपने समाधि अने बोधि- समकित आपो. सम्यग्दृष्टि गृहस्थ जैनो सम्यग्दृष्टि देवदेवीना गुणोनुं स्तवन करी तेओनी द्रव्यपूजा करी शके छे. अष्टादश दोष रहित परमात्मा महावीर जिनेश्वरना सम्यग्दृष्टि देवो अने देवीओ सेवको छे अने ते जैनशासननी प्रभा'नामां मदत करे छे. तेमने साधर्मिक समकितदृष्टि देव तरीके मानवा पूजवामां दोष नयी. चक्रेश्वरी पद्मावती, माणिभद्र वगेरेनी देरासरोमां श्रावको पूजा करे छे तेम घंटाकर्ण वीरनी मूर्ति आगळ तेनी स्तुति करी तेनुं पूजन कर ए जैन शासननी सेवा करनार देवनी भक्ति छे. -
पूजा भणावनाराओए ज्ञानी मुनि वगेरेनी सेवा भक्ति करीने तेओनी पासेथी दरेक पूजाना अर्थ धारवा. दरेक पूजाना रागने धारवा. पूजाने सारी पेठे गातां शीखवं. पूजानां साहित्य तरीके जे जे वार्जित्र योग्य लागे ते वगाडतां शीखवुं, जे पूजा भणाववानी होय तेनो भावार्थ मथमयी समजी लेवो. एक सरखी रीते सर्व गानाराओए तालबद्ध गावुं. मुखे खेसनो छेडो राखवो पूजा एक सरस गानार उपाडे अने बीजा पाछळ ते पद्य गाय, बच्चे कोइ जातनी गरबड थवा न दे, बच्चे आडी अवळी वातो न करे, प्रभुना सन्मुख दृष्टि राखे, जे पूजामां जेवो भाव होय देवो परिणाम धारण
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