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(११२) दूरे नासे, प्रगटे सत्य प्रकाशरे; सत्यने माटे सर्व समर्पण, शुझातम विश्वासरे. वीर० ॥३॥ द्रव्य क्षेत्रने कालने भावथी, सत्यासत्य जणायरे; सत्यनां सर्वे दृष्टि बिंदुओ, प्रगटे सत्य ग्रहायरे. वीर० ॥४॥ सत्यने न्याय ग्रहे मध्यस्थी, पकमे न गद्धापुच्छरे; जूतुं ते साचुं नहीं माने, सत्य आगळ सहु तुच्छरे. वीर० ॥ ५॥ नय निक्षेपने जंग प्रमाणे, जैन धर्म जे सत्यरे; सर्व नयोनी सापेक्षाए, समजो दर्शन कृत्यरे. वीर ॥ ६ ॥ ज्ञानी संतनी सेवा नक्ति, करतां मध्यस्थ नावरे, प्रगटे सर्व कर्म व्यवहारे, समजाता सत्य दावरे. वीर० ॥७॥ काल स्वभावने नियति कमें, उद्यमे थातुं काजरे; पंचनासमवाये छे कार्यनीसिद्धिन साम्राज्यरे. वीर० ॥ ८॥ माध्यस्थभावे वों लोको, करशो धार्मिक कर्मरे; सुणशो वांचशो जोशो चिंतशो, दिलमा प्रगटशे शर्मरे. वीर. ॥९॥ सर्व बाजुथी सत्य तपासो, करो मध्यस्थे काजरे; दर्शन ज्ञान चरणनी प्राप्ति, प्रगटे शिव साम्राज्यरे.
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