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( ८८ )
तृतीया यार्जव धर्म पूजा.
द्रव्यभाव आर्जव गुणे. रमतां केवलज्ञान; मुनिवर आर्जव गुण रमो, स्वयं थशो भगवान् ॥१॥ जन मन रंजन स्वाथथी, कपट क्रियाओ थाय; मानादिकना त्यागथी, आर्जव गुण प्रगटाय ॥२॥ मल्लिनाथ पूरवभवे, कपटे स्त्री अवतार, पाम्या जाणी मुनिवरो, धरो सरलता सार ॥३॥
जीरण शेठ जावना भावेरे, महावीर प्रभु घेर आवे. ए रांग.
प्रभु महावीरने दिल धारो, प्रजुने क्षण क्षण संभारो; उपयोगे आत्म सुधारो, घर आर्जव गुण नित्र ताशेरे; एवो वीरप्रभु उपदेशो, माया त्यागी मुनि शव लेशोरे. एवी० ॥ १ ॥ निष्कपटे कहेतुं ने रहे, दुनियानुं क सहु रहेतुं; मान पूजामा लक्ष्य न दे, जेवुं तर बाहिर तेर्बुरे. एवो० ॥ २ ॥ माया त्यागे प्रभु दिल्ल आवे, अन्य दोषो वेगे जावे;
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