SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ प्रभुयी ते श्री महावीर प्रभुनी पूजाओ ते ते कालमां ते ते देशमां प्रचलित भाषाद्वारा थती हती. पचनी पूजामां मुख्यभाव प्रेम होय के अने ते गये ते भाषाद्वारा बहार आवे छे. प्रभुना गुणोनी श्रद्धा श्रीति भावनाने भक्तो गमे ते भाषाद्वारा बहार प्रगट करे छे. पूर्वे संस्कृत भाषा अने प्राकृत भाषाद्वारा जैनो प्रभुनी पूजानां गाना गाता इता. संस्कृत प्राकृत भाषादिद्वारा प्रभुनी पूजा अने व्रतादि गुणोद्वारा थती प्रभु पूजाद्वारा जैनो प्रभुनी भक्ति करता हता. सोळमा या सत्तरमा सैकाथी गुजराती भाषामां प्रभुनी पूजाओ रचावा लागी. श्रीसकलचंद्र उपाध्याये श्री सत्तरभेदी पूजा रची ते पहेलांनी पूजाओ श्वेली न जाणत्रामां आवे त्यां सुधी गुजराती भाषामा प्रथम प्रजाना रचयिता श्री सकलचंद उपाध्यायजी गणावाना. श्रीसकलचंद्रजी उपाध्यायजी पश्चात श्रीयशोविजयजी उपाध्याय, श्रीज्ञानविमल सूरि, श्री विजयलक्ष्मी सूरि, श्री पद्मविजयजी पंन्यास, श्रीरुपविजयजी पंडित, श्री वीरविजयजी पंडित, आचार्यश्री विजयानंद सूरि, पन्यासश्री गंभीर विजयजी, श्रीमान हंसविजयजी, श्रीमान वल्लभविजयजी वगेरे आज सुधी पूजाओ रचनार थया छे. खरतरगच्छ, अंचलगच्छ वगेरेमां गुजराती भाषामां पूजाओना रचनार अनेक सूरि पंडित सुनिया के अने भविष्यमां घणा थशे. पूजाओ भणाववानो श्वेतांबर जैनोमां घणो रीवाज छे. सर्व पूजाओमां नव पदनी अने वीश स्थानकपदनी पूजाओ वधारे भणावाय छे. उपाध्यायजी श्री यशोविजयजी, श्रीमद् देवचंद्र जी अने ज्ञानविपळजी सुरि ए त्रण For Private And Personal Use Only
SR No.008633
Book TitlePooja Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1922
Total Pages417
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy