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गुण आठ वधारो, आठ दोषने टाळोजी; सर्वथकी आराधक ज्ञानी, क्रिया रहित पण नाळो, श्रुतने. त्यागी० ॥२॥ देश आराधक किरिया भाखी, ज्ञाननी किरिया दासीजी; ज्ञानि ज्ञान आशातना टाळो, शुद्ध स्वरूप उल्लासी. श्रुतने. त्यागी ॥३॥ ज्ञानथी आतम शुद्धि अनंती, कार्य करता थावेजी; अज्ञानी संवरने यात्रवने-रूपे मन प्रणमावे.श्रुतने. त्यागी. ॥ ४ ॥अनुनव ज्ञानी सूरि वाचक मुनि, संगे निशदिन रहेशोजी; बुद्धिसागर आत्म प्रभुता, चिदानंदपद लेशो. श्रुतने. त्यागी० ॥ ५॥
___ आगणिशमी श्रुतपद पूजा.
पंच ज्ञानमां श्रुत -स्वपरोपकारक बेश, चड मुंगां श्रुत बोलतुं, टाळे सर्वे क्लेश. ॥ १॥ चंद्र प्रभुजीसे ध्यानरे मोंये लाग। लगनवा,
ए राग. श्रुत स्वपर उपकारीरे, भवी भावथी सेवो-नवी भावथी सेवो; जगमां ने जयकारीरे. नवी० केवलज्ञा
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