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(५३)
स्यु निवार्णाय कुशेपश्व शमनाय जलं चंदनं पु रूपं धूपं दीपं प्रकृतं नैवेद्यं फलं यजामहे स्वाहा:
॥ अथ द्वितीय पूजा प्रारंभः ॥
उहा.
सार;
स्नात्र भणावी पार्श्वनुं, पूजा की जे पूजक पूज्यनी पूजना, समजीजे सुखकार ॥१॥ बेन पासे वीजीए, चामर चारु नमंग; दर्पण प्रभु आगळ धरो, होवे जयजय रंग ॥२॥ ( सुतारीना बेटा हुने बिनबुरे लोल-ए देशीप्रभु पार्श्व जिनेश्वर गावी एरे लोल, श्री सं वेश्वर प्रभु नामजो ॥ तुज नामश्री नवनिधि संप जेरे खोल, मनवंबीत सिद्धे कामजो | नाम रुडुं संखेश्वर पासतुरे बोल. मिथ्यात्वदशा दूर थायजो शुद्ध श्रद्धा हृदय प्रगटायजो ॥ नामरुडुं० ॥ १॥ पूजा वास्तुक दोय प्रकारीनी रे बोल,
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