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(३७) नन्नावे गहगही हो नविका. ॥ अ॥१॥चा रगति चूरक स्वस्तिक प्रभु, आगे कीजे जावे ॥ त्रण पुंज रत्नत्रयी वरवा, करतां नवदुःख जावे हो नविका ॥ अ०॥२॥ सिशिला पर एक योजन, चोवीसमा तस नागे॥ मोक्ष शिवसि.
सदने हेते, सिक्षशिला करो आगेहोनधिका ॥ अ०॥३॥जवनवनां पुनरावर्त्त दरवा, वरवा शिव पटराणी ॥ नंदावर्त्त करो त्नवि नावे, होवें नवनय हाणीहो नविका ॥ अ०॥४॥कीरयुगले जिम अक्तपूजा, करतां सुख बहु लीधुं।। बुद्धिसागर शिवसुख संपदा, पामवा मनडुं कीधुं हो नविका ॥०॥५॥
(क्यु जाण्यु क्युं बनी थावही.-ए देशी.)
शुन्न परिणाम ते नावथी, अदतपूजा.सार हो नविक ॥ नव रोग दूरे टाळवा, औपघ समचिन धारहो नविक.नावपूजा अति सुख दी
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