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पूजाथी विस्तार; तिमनवि नावे करतां थका रे, बुद्धि शिवसुख निरधार ।। धूपपूजा ॥४॥
(गिरधारे गुण तुमतणां. ए देशी ) . ध्यान धूपनी पूजना, करीए नविजन नावरे; पर पुद्गल उगधता, तेह थकी दूर जावेरे ॥ ध्यान धूप प्रगटावीए॥आर्न रौ उर्ध्यान ,ध रतां दुःख बहु लहीएरे; तेनो त्याग करीनवि, आप स्वन्नावे रहीएरे ॥ध्यान० ॥२॥ धर्म ध्यान शुन्न गति दीए, शुक्लध्यान शिव आपेरे; गुणगणे गुण नपजे, नवोनवनां दुःख कापे रे ॥ ध्यान०॥३॥ आत्मध्यान धरतां थकां,
गंधी दूर नासेरे; योग समाधि लगावतां, चढी ए मोद आवासेरे ॥ ध्यान०॥४॥अस्थिर आ संसारमा, जीवे बहु दुःख सहीयारे; नरकतणां दुःखन्नोगव्यां, ते नवि जाए कहीयां रे ॥ध्यान ॥॥चेतन नरक निगोदमां, वार अनंति नमि
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