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परमात्मदर्शन.
(८१)
गौररूप जे पुद्गलनो गुण तेनो उपचार कर्यो माटे द्रव्ये गु.
णोपचार जाणतो.
५ द्रव्ये गुणोपचार- हुं गौरवर्णछु एम बोलतां हुं ते आत्मद्रव्य अने देह तो पुद्गल द्रव्यनो सामान्य जातीय पर्याय जाणवो. ६ गुणेद्रव्योपचार - यथा दृष्टांत ए गौर देखायछे, गौरतारूप पुद्गल गुण उपरे आत्मद्रव्यनो उपचार ते गुणे द्रव्योपचार. ७ पर्यायेद्रव्योपचार - देहने आत्मा कहेवो त्यां देहरूप पुद्गल पर्यायने विषे आत्मद्रव्यनो उपचार कर्यो ए सातमो भेद जाणवो. ८ गुणेपर्यायोपचार - मतिज्ञान ते पंचइंद्रिय अने मनोजन्य छे माटे शरीरज कहीए अत्र मतिज्ञानरूप आत्मगुणने विषे शरीररूप पुद्गल पर्यायनो उपचार कर्यो.
९ पर्यायेगुणोपचार - शरीर ते मतिज्ञानरूप गुणजछे अत्र शरीररूप पर्यायने विषे मतिज्ञानरूप गुणनो उपचार करायछे, ए नवम भेद व्यवहारनये अनेकधा जीव व्यवहरायछे, निश्चय नये सर्व जीवनी सत्ता एक सरखीछे. सर्व वस्तुथी जीव न्यारोछे, अनादि कालयी आत्मानी अशुद्ध परिणतियोगे आत्मा कर्मादिक ग्रहेछे, यथा मदिरापानथी सुज्ञ मनुष्यनी बुद्धि फरी जायछे, तेम कर्मनायोगे आत्मा परस्वभावमां राज्यो माच्योछे, यदा उपयोगनी एकाग्रताए स्वध्यानमां आत्मा रमे तदा कर्मी दिनो नाश थाय छे. जे रूद्धिने माटे जीव फांफां मारेछे, ते रूद्धि आत्मामां समायीछे. आला पोतानुं स्वरूप ज्ञानवडे जाणेछे अने परद्रव्यनुं स्वरूप पण ज्ञानवडे जाणेछे. आत्माना समान कोइ उत्तम वस्तु नथी, आत्मा आदेय, आराध्य पूज्यछे. आत्मानी ऋद्धि आत्मस्वरूपना ज्ञानथी प्राप्त थायछे. त्रण जगत्नो स्वामी आ प्रत्यक्ष देखाता शरीरमां रहेलो
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