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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परमात्मदर्शन. ( ३७ ) अने अवळी परिणतियोगे कुगुरुमां गुरु बुद्धि धारण करेछे, ते पोतानी कुटेवने गछापुच्छ ग्रहनारनी इव भवभ्रमण दुःख राशि पामतां सद्गुरुनो उपदेश लागतां पग पोतानी हठ मुकतो नथी. तेवो अज्ञानी जीव पोताना आत्मानी शुद्धि करी शकतो नथी. जेने सद्गुरुनो विश्वास नथी अने कुगुरुना वचननो विश्वासछे, ते अज्ञानी पशु आतमा सर्व दुःखनुं पात्र बनेछे, अवळी परिणतियोगे अवळा मार्गे भवितव्यतायोगे गमन करे छे. तेवा जीवने योग्यतानी प्राप्ति विना उपदेश पण क्लेशभूत थायछे, राजा, दीवान, शेठ, लक्षाधिपति होय पण योग्यता विना सद्गुरुनो उपदेश असर करतो नथी. 46 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " दुहा. तर्कशक्ति जेनी घणी, वाणी जस गंभीर; मोक्षाशा मनमां वशी, धर्मकार्यमां धीर. ७० एवा शिष्यो पामशे, अनेकान्त सुपंथ, गुरुगम ग्रंथो वांचीने, थाशे महानिग्रंथ. ७१ भावार्थ - जेनी तर्कशक्ति घणी होय, अने वाणी गंभीर होय, खप पडे तेटलं बोले, मोक्षाशा जेना मनमां वशी होय. अने धर्म कृत्यमां मेरुवत् अडगवृत्ति होय, गुरुनां वचनो वज्रना टांकणानी पेठेज जेम जेना हृदयमां कोतरातां होय, एवा सद्गुणी शिष्यो स्याद्वाद अनेकांत मार्ग पामशे अने स्वच्छंदाचारीपणुं तथा अहंपणुं त्यागीने गुरुगम ग्रंथाने वांची धारी श्रावकपणुं अंगीकार करशे. अथवा शक्ति परिणामयोगे निग्रंथ अवस्था ग्रहण करशे, योग्यता पोतानी केटलीछे अने कया ग्रंथो वांचवा योग्यछे. ते गुरुमहाराज जाणेछे माटे तेमना फरमावेला ग्रंथो वांचवा For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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