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परमात्मदर्शनग्रंथः
प्रस्तावना. जगत्मा प्रत्येक मनुष्यो- धर्मनुं आराधन करे छे. प्रत्येक मनुष्यो धर्मना माटे इच्छा राखे छे. प्रत्येक मनुष्योने अनंत मुख प्राप्त करवानी तीव्र जिज्ञासा वर्ते छे. जन्म, जरा, मरणना दुःखमाथी बचाव थाय ते माटे प्रत्येक मनुष्यो बुद्धयनुसार उपायो शोधे छे. अमर थर्बु ते माटे अनेक प्रकारनी शोधो करे छे, आवी अमूल्य शोध करवानी कोने जिज्ञासा नहि होय ? अलबत सर्वने होय छे. आवी शोध माटे ज्ञानदृष्टिनी जरुर छ अने ते पण सर्वज्ञ दृष्टि होवी जोइए. आवी सर्वज्ञ दृष्टिवाळा तीर्थंकरो प्रथमः थइ गया छे. भा क्षेत्रमा चरम तीर्थकर त्रिशलातनय श्री महावीरस्वामी २४३६ वर्ष उपर थइ . गया.छे. तेमणे केवलझानथी सर्व पदार्थो जाण्या तथा देख्या. मनुष्यो नित्य सुख प्राप्त करे तथा जन्म जरा अने मृत्युना दुःखमाथी छूटे ते माटे तेओश्रीए आत्मज्ञान बताव्यु छे. सर्व प्रकारना जीव अने अजीव पदार्थोनुं स्वरुप बसाव्युं छे. ज्ञानदर्शन अने चारित्ररुप मोक्ष मार्ग पताव्यो छे. नात जातनो भेद राख्या विना आत्मतत्त्वनी शक्तियो खोलंववाना उपायो बताव्या छे. साधु धर्म अने गृहस्थ धर्म एम बे प्रकारना धर्म बताव्या छे. अमर थवाने माटे आत्मधर्मर्नु यथार्थ स्वरुप बताव्युं छे. समवसरणमां वेसी देशना देइ चतुर्विध संघनी स्थापना करी छे तेमना गणधरोए द्वादशांगीनी रचना करी, पश्चात् स्थविरोए उपांगनी रचना करी. तेमनी पाटे मे जे आचार्यों थया. गीतार्थो थया.
ओए प्रकरणो ग्रंथो आदिनी रचना करी. प्रत्येक आचार्योनो मुख्य उद्देश जमानाने अनुसरी गमे ते भाषामा सहेलाइथी मनुष्यो तल मार्ग समजी के तेवा ग्रंथो अने तेवा प्रकारनो उपदेन आ
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