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( ४०८ )
आत्मसिद्धि प्रस्थानक.
गुरुए कीधो जे उपदेश, पामीने तेनो लवलेश: गुरुनी भक्ति वर्णन करी, लागी गुरुभक्ति मुज खरी. ५२२ धर्मगुरुओज थया करो, ज्ञानामृतनो वदो झरो; श्रीसंखेश्वर पार्श्वकपाळ, निशदीन करशो मंगळमाळ. ५१३ धरणेन्द्र पद्मावती सहाय, पामी पूरो ग्रंथ करायः परमात्मदर्शन निर्मळ ग्रंथ, पंचशती जाणो शिवपंथ. ५२४ ग़ाम लोदराए करी मास, मतिस्फूर्तिथी क्यों प्रयासः महेसाणामांपूरो थयो, शुद्धस्वभावे चेतन रह्यो - ५२५
" दुहा. "
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धर्मचन्द सुत जीवणलाल, सुरतवासी जीवदयाल 'सकल संघना माटे कर्यो, ज्ञाताभवपाथोधि तय. ५२६
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श्री सुखसागर गुरुजी बेश, पामी आनन्द होय हमेश; बुद्धिसागर रचना सार, मंगल सिद्धि जयजयकार. ५२७ संवत ओगणीश नपरे, साठतणी शुभसाल; अपाङ शुकला पंचमी, रचतां मंगलमाल.
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
५२८