________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परमात्मदन.
~~~rurammmmmmmmmmmaarnamammer
शिष्य उवाच. न्याययुक्ति दृष्टांतथी, कर्ता कर्मनो जोय; समजे जड शुं कर्मके, फलपरिणामी होय. ४२७
___ उवाच गुरुः. कर्ता भोक्ता जीवछे, पण तेनो नहि मोक्ष; बीत्यो काल अनन्त पण, हजु न मुक्ति पोष. ४२९ पुण्यतणुं फल भोगवे, मानव स्वर्ग मझारः पापतणुं फल भोगवे, दुर्गतिमां अवतार. ४३० पापपुण्य फल भोगवे, चतुर्गतिमां जाय; समये समये कर्मसंच, कर्मरहित नहि क्यांय. ४३१
उवाच समाधानं सद्गुरुः अशुद्धपरिणतियोगथी, फलदं कर्म प्रमाण; तथा निवृत्ति धर्मथी, सिद्ध ठरे निर्वाण. ४३२ काल अनंतो वितीयो, जीवतणो परभाव, आत्मरमणता योगथी, प्रगटे मुक्ति प्रभाव. ५३३ संयोगे वियोगछेज, देहादिक दृष्टान्त; कर्मवियोगे आत्मनी, मुक्ति सुखालय कान्त, ४३५
For Private And Personal Use Only