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बे बोल. "ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्ष " ए मोक्षमार्गर्नु दृष्टिबिंदु छे तथापि घणा जैनो तेना खरा रहस्यने नहि जाणतां एक तरफ वधु पलणतो बीजा तरफ न्युन एटलुज नहि पण अपेक्षा समजवाना ज्ञाननी खामीए घणी वखत डाबो हाथ जमणाने दबावे छे तेवी स्थिति जोवाय छे. आनुं कारण पूर्वाचार्योए द्रव्य गुण पर्याय आदीनुं जे सुक्ष्मज्ञान प्रकास्युं छे ते ज्ञानने समय अनुसारनां मनुष्यो समजी शके तेवी उत्तम शैलीथी सरळ भाषामां ग्रंथो तैयार करी जनसमाज आगळ जोइता प्रमाणमां रजु नहि थवानुं छे.
अमारुं चोकस मानवु छे के जैनधर्मनां सिद्धांतो प्रमाण अने युक्तिओथी एवा तो प्रबळ अने न्याययुक्त छे के जेम जेम ते तत्वो वधु फेलावो पामशे तेम तेम प्राचिन दृष्टि वधु खीली नीकळशे, अने जैनधर्मनुं क्षेत्र बहोल्लं थशे. ____ आ माटे मात्र जैनोज नहि पण सर्वे लोकोना बोधार्थे जैनधमना पुस्तको रचाववाथी अने सारी रीते वंचाववाथी अन्य लोको पण जैनतत्वनो लाभ मेळवशे केमके जैनधर्म मात्र जैनोमाटेज नथी. गमे ते ज्ञाति होय पण तेनां सिद्धांतो अनुसार वर्तन राखनार जैन होइ शके छे. आवी भाव उपकारनी दृष्टि ध्यानमा राखी, काळने अनुसरी, तथाप्रकारनो प्रयत्न करी परमपूज्य गुरुवर्य श्रीमद् बुद्धिसागरजीए आवा तत्वमय ग्रंथो रच्या छे जे पैकीनो आ "परमात्मदर्शन " ग्रंथ छे.
आ ग्रंथ अमे उपर अणाव्युं तेवा प्रकारनी खामीने दुर करनार छे, एम कहीए तो अतिस्योक्ति नहि कहेवाय. ___ आ ग्रंथमा बीजा अनेक विषयो साथे ज्ञान अने क्रिया बनेनी अथास्थित साबीती करी बतावा छ केमके बनेना संमेलन विना
आत्मकल्याण दुर छे. पटद्रव्य, षटकारक, पंचसमवाय, नय निषेपा वीगेरेथी द्रव्य,क्षेत्र,काळ, भावने, अनुसरीने आग्रंथ लखायो
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