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(१८०) क्षणिकचेतनवाद निराकरण, पूर्वजन्म अभ्यासथी, जीव नित्यता सिद्ध पाल युवा वृद्धा विषे, ज्ञाता एक प्रसिद्धः २७५ क्षणे क्षणे बदलायतो, चेतन होय अनेक; पाप पुण्य कोने घटे, तेनो करो विवेक. क्षणिक वस्तुना ज्ञानथी, क्षणिक वाद सुजाण, वक्ता क्षणिक नहीं थयो, नित्यरूप मन आण ५७७ कोइक वस्तुनो कदी, केवल नाश न होय. चेतन नाश कह्या थकी, अन्यावस्था जोय. २७८ अन्यावस्था को नहीं, माटे चेतन नित्य. प्रत्यभिज्ञा सुहेतुथी, नित्यज जाणो चित्त.
२७९ पर्याये पलटाय छे, आतमना पर्याय. अनित्य माटे आतमा, अनेकान्तमतन्याय. २८० शुभाशुभ आश्रव ग्रही, धरतो नाना देह. शाताशाता भोगवे, नय व्यवहारे एह. २८१ पुण्य पापना नाशथी, प्रगटे निजगुण भोग. सूर्याच्छादक अभ्रनो, टळे महासंयोग. २८२ कर्मसंग टळ्या थकी, पामे जीव शिवठाण. पुरुषसम परमातमा, सिद्ध बुद्ध भगवान
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