________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परमात्मदर्शन.
(***)
भावार्थ - जे शिवपद अराध्य, साध्य, ध्येय, दुर्लभछे. ते पद ने ज्ञानीओए शुक्लध्यानथी प्राप्त कर्युछे.
आत्मा तेज ब्रह्मस्वरूपछे आत्माज शिवस्वरूपछे, आत्माज परमात्मरूपछे, सिद्धत्वपणुं आत्मानो शुद्ध पर्यायछे, सम्यग् मोक्ष स्वरूप वीतराग वचनोथी प्रतीत थाय छे, ज्यारे बंधतत्वनो नाश थायछे. त्यारे मोक्षतत्त्वनी उत्पत्ति थाय छे. मोक्षतत्त्वथी आत्मा भिन्न नथी. मोक्षमयी आत्मा छे. ज्ञान, दर्शन अने चारित्रथी मोक्ष माप्तिछे. ज्ञान, दर्शन अने चारित्र गुणमय आत्माछे.
अज्ञानी जीव आत्मानो शुद्ध स्वभाव नहीं जाणतो छतो राग द्वेषादि करेछे, त्यारे ज्ञानी जीव आत्मस्वभाव जाणतो छतो. राग द्वेषनो त्याग करी कर्मथी रहीत थइ मोक्षपद प्राप्त करेछे. ज्ञानी आमाना स्वरूपमा सदाकाल रमण करी अखंडानंदानुभव प्राप्त करेछे. जेम हंसने मान सरोवरमां रतिछे तेम आत्मज्ञानीने आत्मस्वरूपमां रति होयछे. जे चकोर चंद्रमांज प्रीति धारण करेछे. तेम आत्मज्ञानी आत्मस्वभावरमणतामां प्रीति धारण करेछे. सीतानी जेम राममां प्रीति तेम आत्मार्थीनी आत्मस्वरूपमां प्रीति रमणता भासनता वर्तेछे. आत्मज्ञानीने शास्त्रकर्त्ता श्रमण कये छे. श्रीआनंदघनजी महाराज पण कछे के
आतमज्ञानी श्रमणकहावे, बीजा तो द्रव्यलिंगीरे.
वळी श्रीयशोविजयजी उपाध्याय कहेछेके, समाधिशतकमां
यथा
केवल आतम बोध, परमारथ शिवः पंथ तामे जिनकुं मगनता, सोहि भाव निग्रंथ.
परमार्थ शिवat पंथ केवल आत्मज्ञान छे तेमां जे भव्यात्माने मनताछे ते भाव निर्ग्रथ जाणवा. निक्षेप भेदयी निर्बंध चार म
For Private And Personal Use Only
-