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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन. (३२१ ) भावार्थ - अंतरनुं दुष्ट चित्त कंइ तीर्थ स्नानयी शुद्ध तुं नथी केमके मदिरानुं वासण सेंकडो पाणीथी धोइए तोपण ते अपवित्र ज रहेछे. माटे सारांश के - जलथी मात्र स्नान कर्याथी पवित्रता प्राप्त थती नथी. परंतु दयारूप शौचथी पवित्रपणुं प्राप्त थाय छे. माटे दीक्षा अंगीकार करी प्रथम अहिंसा व्रतनुं पालन करवुं जोइए. कोइ पण जीवनी हिंसा करवी नहि. मुनिने वीस वशानी दया होयछे. अने श्रावकने सवावशानी दया होयछे, मांसनुं भक्षण करनार, मांस वेचनार, जीवो, पापी जाणवा संसारनो त्याग करनारा मुनीश्वरो अहिंसा व्रतनुं पालन करी शिव पाम्या अने पामशे. जीवनी हिंसा करवाथी थएल दारुण दुःख यशोधर चरिथी जाणवुं. हवे दीक्षा अंगीकार करी बीजुं सत्य बोलवु, मृषावाद एटले जू कदी बोलवं नहिं तद्रूप सत्यत्रतनुं परिपालन क खुं. त्रीजुं महाव्रत अंगीकार करी कोइनी नजीवी वस्तु पण कला विना लेवी नहीं. पोतानी वा पारकी सर्व स्त्री वर्गनो त्याग करवो. मनमां पण भोग भोगववानी इच्छा करवी नहीं. स्त्रीना सामुं सराग दृष्टिथी जो नहि. नव प्रकारे ब्रह्मचर्य व्रतनी गुप्ति पाळवी अने मैथुननो सर्वथा त्याग करवो तेने चोथुं ब्रह्मचर्यव्रत कहे छे. सर्व व्रतो नदीओ समान छे अने ब्रह्मचर्यव्रत समुद्र समानछे, ब्र ह्मचारी पुरूषोनी कीर्ति वधेछे, ज्यां जायछे त्यां तेने मान मळेछे. देवताओ पण ब्रह्मचारी पुरुषोने साहाय्य करेछे. मंत्रनी सिद्धि पण शीलव्रत पाळनारने तुरत फळेछे. देवताओ, यक्षो, राक्षसो पण ब्रह्मचारी मुनिने नमस्कार करेछे. ब्रह्मचारी मुनीश्वरने वचन सिद्धि संप्राप्त थाय छे, ब्रह्मचारी पुरूषनो संकल्प सिद्ध थाय छे. कोई मनुष्य सुवर्णनां मोटां देरासर करावे अने कोइ ब्रह्मचर्यव्रत अंगीकार करे तो पण ब्रह्मचारी पुरूषनी बरोबर सुवर्णनां देरासर For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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