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( २० )
उद्यम.
प्राप्त थयुं पण अंतरमां कंद होतुं नथी, माटे वर्तन आत्म स्वभावमां eg जोइए, एम करवायी अनुक्रमे आत्मा कर्माष्टकनो नाश करी मुक्तिपद पामेछे. अतीत काळे अनंत जीवो मुक्ति गया जायछे अने जशे इति सप्तम विषय संपूर्ण.
अष्टम विषय.
संसारमां आत्मा क्यारथीछे -- ?
संसारमां आत्मा अनादिकाळथीछे. जेनी आदि होयछे ते उप्ततिमान पदार्थ होय छे। अने जे उत्पत्तिमान् होयछे ते कार्यरूप कहेवायछे, अने जे पदार्थ कार्यरूप होय ते समवाय निमित्त आदि कारणोनी सामग्रीद्वारा उत्पन्न थायछे अने तेथे ते कार्यरूप पदार्थ अनित्य कहेवाय छे। अने जे पदार्थ अनित्य होयछे ते विनाश पामे छे. आत्माने कोइए उत्पन्न कर्यो नथी अने तेथी ते अनादि कहे वायछे.
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जे पदार्थनी आदि नथी तेनो अंतपण नथी. ते प्रमाणे आत्मा अनादि छे अने अनंतले. जे वस्तुनो कोइ बनावनार नथी ते वस्तु नित्य कहेवायछे, तेम आत्मा तेनो बनावनार कोइ नयी तेथी आत्मा नित्य कहेवायछे. जे नित्य बस्तु होयछे ते त्रण कालमां नाश पामती नथी. तेम आत्मा पण नित्यछे तेथी त्रणे कालमां नाश पामतो नथी, जे वस्तुउत्पन्न थायछे ते कारण पूर्वक होयछे, जेम घटवस्तु मृत्तिका दंड चक्र कुलालादि पूर्वकछे अने जे वस्तुनो कोइ उत्पन्न कर्त्ता नथी. ते कारण विना स्वयं सिद्ध होयछे जेम आकाश ते प्रमाणे आत्मा पण कारण विनानोछे. अर्थात् ते कोनाथी बन्यो नथी.
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