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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३०१ ) उपस्थिति.. शक्तिभावधी आत्मानुं कार्य सरे नहिं. जेम अरणि कामां शक्तिभावे रहीछे पण अरणिना काष्ठने बाथ भीडवाथी टाढ नाश पामे महि ते दृष्टांतना अनुसारे शक्तिभावे रहेलो आत्मानो धर्म ज्ञानथी जाणी वीर्यथी प्रगट करीए तो चतुर्गतिनां अनंतशः जन्म जरा मरण टळी जाय. आत्माना गुण पर्यायतुं व्यक्तिरूपे प्रगटवुं तेज स्वभाव लाभ जाणवो. प्रश्न - घातीकर्मनो नाश शावडे त्वरित धाय. • उत्तर - ज्ञान अने ध्यानथी प्रमादना त्यागपूर्वक आत्मोपयोगे स्थिरताथी कर्मनो नाश थाय छे. पर्वतनी गुफामां निविड अंधकार होयछे तेनो नाश दीपकथी थायछे तेम अज्ञान तथा कर्मनो नाश पण आत्मज्ञानथी थायछे मोटी तृणनी गंजी पण अग्निना स्वल्प कणीयाथी नाश क्षणमां पामेछे तेम अनंत भवोपार्जित घातीकर्मनो नाश पण आत्मज्ञानथी स्वल्पकाळपां थायछे. श्रीपाळना रासम देशनानी ढाळमां धुं छे केश्री. यशो विजय उपाध्याय. क्षण अर्धे जे अघटले, तेन टळे भवनी कोडीरे, तपश्या करतां अतिघणी, नहीं ज्ञान तणीछे जोडीरे. ज्ञानी पुरुष अर्धक्षणमां जे पापनो नाश करेछे ते कोटी भव पर्यंत कठीन विचित्र छठ अठम मास वे मास विगेरेनी तपश्चर्या करतां टळे नहीं. माटे ज्ञाननी कोइ जोडी एटले ते समान कोई नयी माटे आत्मज्ञाननी प्राप्ति करवा प्रयत्न करवो. ज्ञान रूपी अग्नि सर्व कर्मने वाली भस्म करेछे. षद्रव्य सात नय तथा निक्षेप द्रव्यादिकना ज्ञानयी स्वपर विभाग थाय छे अने पोताना घरमा प्रवेश करेछे अर्थात् असंख्य प्रदेशरूप जे घर तेमां आत्मा उपयोगपणे परिणमी अशुद्धतानो परिहार करेछे, पोताना घरमा आवतां मा For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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