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(२९) कर्मराजा अने धर्मरजानुं युद्ध. पामेछे हुँ पोतानो पण पोतानी मेळे प्रकाश करूळु माटे लोको सूपनी उपमा मने आपेछे, कर्म रिपु सकळ सैन्यनो हुँ कल्पात काल वायुनी पेठे क्षणमा नाश करूछ. में अनंता जीवोने मुक्ति नगरी प्राप्त करावी, कराकुंछु, ने करावीश, माटे हे पिताजी ! मारा बेठा आप चिंता करो ते अनुचितछे, आ प्रमाणे ज्ञानपुत्रे भाषण कयु. त्यारवाद ब्रह्मचर्यनामनो धर्मराजानो पुत्र महा पराक्रमी प्रख्याति पामेल सविनय पिताजीने नमन करी गंभीर वाणीथी बोत्यो के आ दुनियामां-ब्रह्मचर्य नामे करी हुं प्रसिद्धताने पाम्यो छ. __परस्पर मैथुन संबंधनो हुँ त्याग करावुछ. हुं अनादिकाळयी जीवोमा वास करुंर्छ ज्यां मारो विरति नामनो नेता बसेछे तेनी साये हुं पण वसुछु. ज्ञान तथा वैराग्य मित्र मने साहाय्य आपेछे. नवविध ब्रह्मचर्य गुप्ति धारक जीवो कामनो पलकमां पराजय करे छ. मारा वासथी प्रत्येक मनुष्योना शरीरनी आरोग्यता वृद्धि पामेछ, धर्म कृत्यमा धैर्यता प्रेरक हुई. सर्व व्रतोमा समुदनी उपमाने हुं धारण करुछु. मारा वासथी मनुष्यो वचन सिद्धि कीर्तिमान् अष्ट सिद्धि आदि प्राप्त करेछे. मोहादि शत्रुओ पराङ्मुख थायछे. आसन्न भव्य जीवोमां हं विशेषतः वास करुछु, मारु अवलंबन करी अनंत जीवो मुक्ति गया जायछे. अने जशे, माटे हे पिताजी! आप चिंतात्यागी धैर्य धारण करो अने सर्व सुभटोने धैर्य आपो. ___ आम ब्रह्मचर्यना कथन पश्चात् संवरसंज्ञक महारथि योध शौर्य वाणीधी सभा समा बोल्यो के-हे धर्म राजाजी! हुं सत्तावन रूप करी कर्मारिनो समूलतः नाश करुडं जे छिद्र द्वारा कर्म सैन्य जीवोमा प्रवेशेछे ते छिद्रोनो हुँ रोध करुझु. तेथी कर्म सैन्य कई
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