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परमात्मदर्शन.
जेवो बीजो कोइ मिय नथी. हवे कर्मनृपतिनो पुत्र अज्ञान
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स्वकीय स्वरूप सभा समक्ष
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कथे छे. अरे हुं मोहराजानो पुत्र अज्ञान मारूं नामछे, पंडित लोक मारा वैरीछे. चउद राजलोक मारू स्थानछे. सर्व जीवोने में अंध कर्याछे. ज्ञानावरणीय कर्मे करी हुं सर्व जीवोमां वसुंलुं धर्मराजा तथा मोक्षनगरीनुं भान हुं थवा देतो नथी. सत्यासत्यनुं स्वरूप जीवोने जाणवा देतो नथी, सत्यदेव गुरुधर्मनुं ज्ञान मारी सत्ताथी जीवो करी शकता नथी.
(२८१ )
सीकरनां सूत्रो तथा तेमनी आज्ञा प्रमाणे मोक्ष नगरी प्रतिगमन करनार मुनिवरो पण मारा वशमां रहेला जीवोने समजावी शकता नथी. जे समजु छे तेने साधुओ समजावी शके, पण हुं ज्यां वसुं हुं त्यां तेओ गमे तेटलो उपदेश आपे तोपण उखरभूमां वर्षा - नीपेठे निष्फळ जायछे. चारगतिना जीवो मारा वशमांछे. पशुपंखी आदिजीवोनी में केवी अवस्था करीछे; माटे हे कर्मनृपति मारा जेवा पुत्रो छतां आपने चिंता करवी योग्य नथी.
अज्ञान पुत्र आ प्रमाणे कहीने मौन रह्यो, त्यारे कर्म नृपतिनी निंदा नामनी पुत्री सभासमक्ष कहेवा लागी केनिंदा भाषण.
हे पिताजी ! हुं आपनी निंदा नामनी पुत्री छतां आप केम उदास थाओछो. सर्व जीवोने हुं वश करुछु अदेखाइ नामनी मारी माताए जन्म आप्योछे. सर्व जीवोना गुणोने हुं तेमां पेसतां भस्म करु. ज्यां माता अदेखाइनो मवेश थयो. त्यां हूं त्वरित हाजरी आपी प्रवेश करुछु.
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मुनियो पंडितो के जे अमृत सरखां वचन वदेछे तेना मुखमी खराब वचनरूपी विष्ठा कढावं. जे मनुष्यो परपुरुषना