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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन लावेछे तेवा जीवो मायः नरकगतिना मेमान थइ त्या दुर्गंधमय खराबशरीरोने पामी असह्य दुःख क्षणेक्षणे भोगवेछे, विविध प्रकारनी क्षेत्र वेदनाओ भोगवेछे, जे जीवो हजारो माछलीओनुंभक्षण करेछे अने रात्रिदिवस तेमने मारवानो उद्यम करी रह्याछे तेवा जीवो नरकगतिमां गमन करेछे. मरती वखते तेवा जीवोनी लेश्या बगडे छे, अने नरकमां दुःख पामतां तेवा जीवोने मुकाववा कोइ जतुं नथी. त्यां नरकमां महारौरव दुःख पामेछे, करेला पापोमांथी छुटता नथी. जे जीवो शिकार रमी हजारो पंखी पशुने मारी तेना मांसथी पापी पेट भरेछे अने सदाकाल तेवा पापी शिकारकृत्यमां राचीमाची रहेछे तेवा जीवो प्रायः नरकगतिमां परमाधामीनी करेली वेदनाओ, बूमो चीसो पाडता भोगवेछे, सागरोपम वर्ष सुधी नरकमां रहेछे, ते जीवोने जरामात्र पण सुख नथी. आंख मींचीने उघाडीए तेटली वखत पर्यंत पण नरकमा मुख नथी जे जीवो मांसथी पापी पेट भरी आनंद मानेछे तथा परस्त्री लंपटी होयछे तेवा जीवो प्रायः नरकगतिमां जायछे, रौद्रध्यानना चार ४ पायामां वर्ततो जीव क्रूरपरिणामयोगे नरकमां गमन करेछे. माटे हे आत्मा तुं जो उपरोक्त हेतुओठे सेवन करीशतो नरकगतिमां जाइश. असंख्य जीवो रौद्र परिणामने धारण करता नरकगतिमां गया अने अनेक जायछे अने जशे. तुं मनथी तारूं वर्तन तपासीजी, तुं गत्री दिवस केवा प्रकारना विचारो धारण करेछे, तुं रात्रीदिवस पापनां केवां केवां कृत्य करेछे. वावे तेवं उगे आ कहेवतने याद राख. तें अज्ञानथी नरकगतिमां जवाय तेवां पापो को होय तो हवे ते बावतनो पश्चात्ताप करवो घटेछे, अने गीतार्थगुरू पार्थे आलोचना लेवी घटेछे. प्रायश्चित्त विना पापनी शुद्धि थती नथी. जेने भवनी भीति उत्पन्न थइ होय ते प्रायश्चित्त ग्रहेछ, मान ल For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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