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केसी भने प्रदेशांनो संबाद.
नवी, गाळया गळता नथी, एक प्रदेशे आत्मा कहेवाय नहीं, बे मदेशे आत्मा कहेवाय नहीं, असंख्यात प्रदेशमयी आत्मा कहेवाय छे, जंढरूप पुद्गळकी आत्मानुं स्वरूप न्यारुडे, अनंतज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र, अनंत वीर्य, इत्यादि आत्माना अनंत गुणो छे, आत्माना एकेक प्रदेशमां अनंत धर्म रक्षा छे, आत्मामां अनंत सुख अस्तिभावे रधुं छे.
किंतु अनादि कालधी जीव पोतानास्वरुपना अज्ञानथी परवस्तुमा अहंभाव धारण करी, मिथ्यात्व, अविरति, कषाय अने योगयी पुद्गल स्कंधोने अटकर्मनी वर्गणा तरीके परिणमावी विचित्र शरीरोने धारण करे छे, जीवनी अनादिकाल मूळ वसति निगोद छे, निगोदना जीव बे प्रकारे छे. १ सूक्ष्मनिगोद २ बादरनिगोद, अनंत जीवो बच्चे एक शरीर होय छे अने चतुर्दश रज्वास्मक ( चउदराज ) लोकोने काजलनी कुंपळीनी पेरे व्यापीने रखा छे, तेने सूक्ष्म निगोदीया जीव कहे छे.
ए सूक्ष्म निगोदीया जीवने मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, अने योग रह्या छे. सदाकाळ ते दुःखना भोक्ता छे. त्रण प्रकारनां जे अज्ञान छे, तेमांथी एक पण अज्ञान टर्पु नथी, तेनामां समजवानी कंड पण शक्ति नथी. ए सूक्ष्म निगोदना जीवोमां केटळक भव्य जीवो अने केटलाक अभव्यजीवो छे. साधारण वनस्पतिना जीबोने बादर निगोदीपा जीव जाणवा, द्विमकारे निगोदम अनंतत्रः जन्म मृत्युना चक्रवेगे जीव भम्यो, त्यांथी भवितव्यतायोगे पृषिबी, जल, ज्वलन, वायु, प्रत्येक वनस्पतिनां शरीरो धारण करी
भ्रमण कर्फ्यू, पण आत्मस्वरूपनो अवबोध थयो नहीं दान ए श्री वस्तु के वेटलं पण जाणवामां आव्यु नहीं अने ते कर्य नहीं.
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