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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAAAAAAAAAA परमात्मदर्शन. (१२.) समग्रविद्याएकरी विद्वान होय अने सर्वकलानो वेत्ता होय तोपण कपटनो त्याग थवो मुश्केलछे. धन्यछे एवा पुरूषोने के नानां भोळां बाळकोनी पेठे सरलताने धारण करेछे. जेने तत्त्वनुं ज्ञान नथी एवा बालकोनी सरलता पण प्रीति माटे थायछे तो जे सर्व शास्त्रार्थना पारंगामीछे, एवा पंडितोनी सरलता आत्माने विशेष हितकारी थाय तेमां शुं कहेवू ? श्रुतज्ञाननो दरियो एवा गौतम गणधरे पण सरलताथी भगवाननी वाणी सांभळी अहो केवी आश्चर्यता ? सरलपणे आलोचना करवाथी घणां कर्मने पाणी खपावेछे, कुटिलताथी आलोचना करतो अल्प पापी होय तो पण पाणी पापने वधारेछे, जेनी कायामां मनमां वचनमा कुटिलताछे, एवा जीवो उत्कृष्ट तप तपे, आकरी क्रिया करे, वैराग्यरंगमां झील्या होय एवा देखाय तोपण तेनो आत्मा कर्मरहीत थइ मोक्षपद पामतो नथी, मायाए रहीत जीवोनो मोज थायछे एमां संदेह नथी. विचित्र प्रकारनां तप अने विचित्र प्रकारनी धर्म संबंधी क्रिया अने ज्ञानमां विचक्षण एवा पुरूषो पग एक समग्रदुःखमूलभूता कुटिलताने सेवता दुर्यो निमां उपजी विचित्र प्रकारनां भयंकर दुःखोना भागी थायछे. जेम वीरमती नामनी साध्वी कुटिलताथी दुःख पामी तेम कपटी पुरुषो पण धर्म विषयमा कुटिलता करी चतुर्गतिरूप संसारमां परिभ्रमण करेछे, माटे आत्मार्थि पुरूषोए मने करी वचने करी तथा कायाए करी कुटिलतानो त्याग करवो, निष्कपटी मनुष्यने धर्म परिणमेछे. उदायीराजानो घातक बाह्यथी साधु अने अत्यंत विनयवंत एवो विनयरत्न कुटिलताथी मरी नरकमां गयो, तेम तेनी पेठे जे धर्माचारमा बाह्य थी जुदा आचरण अने मनमा जूद एम करशे ते धर्मरन्न पामी शकशे नहीं. अने दुःखना For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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