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मन वाणीथी न्यारो वर्ते, निज निजने परखावे न.३ अस्ति नास्ति स्याद्वाद स्वरूपी-घटनिंतर वही साचो, सुख अनंतु क्षणमां विलसे, शोधे बाहिर काचो.न. ४ वरते न्यारो जमश्री चेतन, आप स्वरूपे अन्नेदी, बुद्धिसागर निर्वेदीने, जाणे क्युंकर वेदी. न.५
माणसा.
॥ पद. ११२ ॥ प्रातम अपनो स्वरुप नोहारो, बहिर दृष्टि नटकत
नवमां अन्तर दृष्टि तुं तारो. आतम. १ शुइ निरंजन चिघन स्वामी,स्वरुप रमण अविनाशी क्षायीक नावे निज गुण नोगो, आत्मानंद विलासी.२ काया मायाश्री ने न्यारो, ब्रह्म स्वरुप निरधारो, नुत्पति स्थितिव्ययनो विलासी,गुणगणनो नहि पारो.३ पूर्व कोमी वर्ष- स्वप्नु, जागंतां उर थावे; शुभ स्वप्नावे जागंतां ऊट, पर परिणति दूर जावे. ४ ए हुँ एनो एडे मारूं, दीवले पण अन्धालं; बुद्धिसागर जोतां जागो, शुं मारु ने तारु, आतम.५
विजापुर.
॥ पद ११३ ॥ मनवा घेसी रमे क्युं बाजी, होत न प्रनु तुम राजी
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