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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६ काया माया वचनातीत दे, नदि गंगा तर काशी; बुद्धिसागर चेतन चिन, समजे तो सुखराशि. प्री. ३ माणसा. पद १०८ - पदम प्रभु प्राणसे प्यारा-ए राग. चेतन तारी गति न्यारी, समज ले चितमां धारी. चे० प्रकाशी तुं अविनाशी, त्यजी दे आश सुखवासी; मोदादिकथी रहो न्यारा, लहो निज रूप निरधारी. १ नहीं तुं देह नहीं वाली, ग्रही ले सत्य हित जाणी; अनुभव सत्य ल्यो साचो, सदा त्यां स्थिर थइ राचो. २ नदीं ज्यां दुःखनी बाया, नहि ज्यां राग परुबाया; सदा शुद्ध बुद्ध एकीलो, ग्रहीने नव्य सुख कीलो. चे. ३ मुनीं ब्रह्मने गायो, योगीन्द्र योगश्री ध्यायो बुधयब्धि ध्यान तस साधुं, अवर तो जाणवुं काचुं.चे. ४ माणसा. ॥ पद १०५ ॥ प्रीतम मुज कबहु न निज घर आवे, परघर जटकत याचक होकर, वेश्या संगी कहावे. प्रीतम १ मोद मदिरा वेश्या पाकर, नाच विविध नचाबे घट रुद्धि सहु फोली खावे, मणामांहि मूलावे. प्री. २ जान सखि मुज स्वामि गनावो, रीजी यथा घर आवे For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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