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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ पद ७७ ॥ दमी रमतमा पमोरे सन्तो दमी रमतमा पमी-एराग पापकर्म वहु नारी रे निन्दा, पाप कर्म बहु नारी ___मनमां जोजो विचारी रे. निन्दा-ए टेक. निन्दकनी दृष्टि के अवली, गुण अवगुण देखाय; पापीमां पापी निन्दक, मरी नरकमां जायरे. १ चांदां देखे कागमो जेम, निन्दक देखे दोषः । धन्तुर नक्षकनी पेठ ए, शुं करवो त्यां रोषरे. नि. २ चामो चुगली निन्दक करतो, कलंक चढावे शीर, चंमालश्री पण निन्दक पापी, धोतो परनां चीररे, ४ क्रियाकाएक निन्दकनां संतो, लेखे नहि गणायः । नाम देने निन्दा करतो, मुक्तिपुरी नहि पायरे. ५ साधु सन्त वैरागी त्यागी, जोगी जोगी फकीर, ... निंदा परतणी परहरशो, पामशो नवजल तीररे. निंदामांहि सह लपटाया, बचीया कोइक सन्त; निंदक माथे नथी शिंगमां, वाणीथी ओलखंतरे. ७ अदेखाइनी पुत्री निंदा, मुक्तिमार्ग प्रतिकूल लाखचोराशीमां लटकावे, नाखी माथे धलरे. नि. समकीती निंदा नवीकरशे, करशे गुणन गान; श्वान दंतने कृष्ण वखाणे, गुणनुं कर बहु मानरे.ए सर्व गुणो जाणो जिनवरमां, बाकी दोषी होय; निजमां अवगुण पोट जरी ,जुवे न तेने कोयरे.१० For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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