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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२ फल किम्पाकना सरखं सुख त्यां, केवल डुःखनुं धाम जोड़ने तमे जोजोरे, जोला जन नरमायडे. अं० ३ वन्ध्याने स्वप्नानी अंदर, सारो पुत्र जलाय. परणाव्यो चोरीनी अंदर, मनमां सुख बहु पाय; मरी गयो रोतीरे, मूर्छा बहु खाय बे अंतरण ४ रुवे पीटे माथु पाने, भांखो उघम जाय, पुत्र कल्पना सुख दुःख खोदु, बुद्धिसागर गाय. डुनीया नंधी चालेरे, शुं त्यां को उपाय बे. अं० ५ मेहसाणा. ।। पद ७५ ॥ नेवानुं पाणी मोरे, व्हाला चाल्युं जाय बे. डुनीया मन वळुरे, सवलुं सन्त गाय बे; जावुं त्यां तो कोइ न जावे, करवुं ते न कराय, जाणवुं ते तो रही बाकी, रातने दीन गलाय. मोद दारु पीधेरे, जान तो भूलाय बे. नेवानुं० १ राजाने तो रंक गणीने, करी नदि सारवार, रंकने राजा मानी बेगे, धिक् परुयो अवतार. अन्तर धन खोयुंरे, मोटो ए अन्याय बे. नेवानुं० २ 4 लोह चलानुं क्षण करवुं, जेवुं एह मुइकेल, तेवुं आत्मस्वरूपे श्रावुं, नथी बालकनो खेल, For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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