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नावरम चिन्तामणि, कल्पवल्लि सुखकार. १२ परोपकारि गुरु तो, प्रत्युपकार न थाय; अदनूत महिमा गुरुतगो, वीरलाने समजाय. २३ श्रा नक्ति योग्यता, सुर्खन आ संसार; धर्म तत्त्व आराधतो, नवि मुक्ति वरनार. २४ सदगुरु पच्चिशी कही, गुरुथी सहु तरनार, बुइसागर वन्दना होजो वारंवार,
नरोमा.
॥ पद. ६६ ॥ हमारो देश ने न्यारो, प्रनु प्रेमे जणावानो; हमारा देशमा शान्ति, अलख नामे गगावानो. १ हमारो ते तमारो , तमारो ते हमारो ने, समजता सहु सुखी थावे, जर देशमां फरी नावे, २ हमारा देशमा योगी, अलखनी धुन लगावे हमारा देशमां संतो, अलखनां गान गावे. ३ नहि ज्यां शोक नहि त्यां रोग, नहि ज्यां जन्मने जाति नहि ज्यां दुःख दिलगीरी, नहि ज्यां वर्णने शाति.४ सदा ज्यां योगीओ जागे, नहि कोइ वैखरी बोले नहि ज्यां कर्मनुं नाम, अतुल धन शु६ को तोले. ५ अखं सुखनी वहे धारा सदा शुझबुझ निरधारा लहे देश ते महाराणा, अवर सहु जाण नादाना.६
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