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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ रोगी नहीं तुंनोगी नहीं तुं, जामो नहीं तलनारजी, देहमां वस्तीयो माया रसीयो, अनुपयोगे धार. अ. १ तुजथी सहु शोधाय व्हाला, आदि नहीं तुज अंतजी, मायामां मस्तान थ तुं, लाख चोराशीनमंत. अ. २ परस्वन्नावे नान नूलो, गर्यो नहीं एक गमजी, पाद हेगळ दि परगट, देखे नहीं दु:ख धाम. अ. ३ दैव साहिब रीकोने तने, आपी नरनी देहजी; साध्य सिदि साधीले तुं, माग्या वरश्या मेह. अ. ४ सोऽहं सोऽहं ध्यान लागे, जागे आतम ज्योतजी; बुद्धिसागर नानु प्रगटे, श्राय नुवन नद्योत. अ. ५ विजापुर ॥ पद. १५ ॥ अलख देखमें वास हमारा, मायासे हमहें न्यारा निर्मल ज्योति निराकार हम, हरदम हम ध्रुवका तारा.१ सुरता संगे कण कण रहेणा, जुनीयादारी दूर करणी; सोहंजापका ध्यान लगाना,मोद माहालकी निस्सरणी. पढना गणना सबही जुग, जब नहीं आतम पिगना; वरविना क्या जान तमासा,लुणबिन नोजनकुं खाना.३ आतमझान विना जन जाणो,जगमा सघळे अंधियारा; सदगुरुसंगे आतमध्याने, घटनिंतरमे नजीयारा. अ. ४ सबसे न्यारा सब हममांहि ज्ञाता शेयपणा धारे; For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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