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. ॥ पद शामळीयानी पाघमो-ए राग, २१७ ।। देखो देह देरासर मांहि परमदेव आतमा, बन्दो बन्दोरे नविक, सुजाण नठी परत्नातमां, देह देरासर दीपतुरे, ती लोक मजार, लोकाकाशनी पेठे तेनो, वर्तेने आकार. परम ? मतिश्रुत दोषांखे करी रे, देखो समकित हार, पेसंतां तेमां नलारे, दोग देव जयकार, परम०३ बे कर जोमी वन्दीएरे, वीर्योल्लास वधंत; अष्ट प्रकारी पूजनारे, कोजे मन एकंत. परम० ३ मुपशम जल कलशे नरी रे, प्रेमे करो पखाल, अकिन्चनता केशरेरे, पुजो परम दयाल, परम०४ मदासीनता पुष्पनो रे, गुंथी माळ चढाव; ध्यान धूप प्रगटावीनेरे, मोह अशुचि हगव. परम झानदीप प्रगटावीएरे, होवे महा नद्योत, संयमना शुइ स्वस्तिकेरे, मळशे ज्योतिमा ज्योत. ६ अनुन्नव रस नैवेद्यश्री रे, पामो सुख अनन्तः शिवफल पुजन शेवनारे, जे करशे ते महन्त. ७ रुपारुपो स्वरुपथी रे, शक्ति अनन्त सदाय, वैखरीश्री गावतारे, वचन अगोचर थाय. परम पुष्टालम्बन जाणीएरे, सूत्रलिः६सुखकार; जिन प्रतिमा जिनवर समीरे, पुजो धरी व्यवहार.ए मिमित कारण सेवतारे, नपादान शुइ थाय
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