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१६६ दान देवामां दीनता, प्रनु पूज्यामां पंगा गरोले निज स्वार्थमां, ढोल जेवा कुटंग, पामर ४ भाशाना आधीन , दया देव न दील: सद्गुरु संत न सेवतो, जेवो वननोरे निल. पा ५ कस्तुरीमृग गंधने, लेवा मारेरे दोट: कस्तुरीले नानिमां, जेनी वर्ते न खोट. पामर ६ नूल्यो पामर प्राणीयो, प्रनु परख्या न प्रेम: अंतरना प्रज्ञानथी, हार्यो हीरो नेम. पामर ७ सदगुरु शरण कर्या विना, जाय जन्मारो फोक, बुद्धिसागर मोहबाजीमां, फुले उनिया फोक. पा05
साशंद.
पद. ॥ २१२॥ (वैदरजी वनमा वलवले-ए राग.) सेवो सद्गुरु प्राणीया, संत सेव्याथी सुख; कोटी जन्मनी कल्पना, टाळे कर्मनां दु:ख, से १ प्रादित्यवार नपासीए, रुमा आतमराम; सोमे समता शांतिथी, करिए धर्मनां काम. से०२ शुइ बुझ परमातमा, बुधवारे सेव; गुरुवारे गुण गाइए, जय जय गुरुदेव. ०३ शुक्रवार सोदामणो, सुणो सूत्र स्तिांत जामे ज्योति ज्ञाननी, टळे जवनी ब्रांत. से०४
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