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पर्यायार्थिक नययी होवे तेंदजो. समजी सात नयोथी आत्मस्वरूपने, टाळो मिथ्या विषय वासना रागजो, बुद्धिसागर अवसर पामी चेतजो, अन्तरथी करजो सहु माया त्यागजो सहु० ७ साणंद श्री शांतिः ३
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सहु० ६
नघवजी सन्देशो कहेजो श्यामने - ए राम.
|| श्रात्मपद १०३ ॥ ज्ञानानन्दी तत्त्वस्वरुपी श्रातमा, अन्तर्यामी पुरुषोत्तम भगवान्जो, ब्रह्मा विष्णु शंकरने गोपालजी, अनेक नामे शो तुं गुणवान्जो. अन्तरदृष्टि दर्शन कीजे श्रात्मनुं, नासे तेथी जवजय प्रान्ति नर्मजो सगुण निर्गुण श्रातम तुं सापेक्षथी, अनेकान्त स्वनावी तारो धर्मजो. हारी भक्ति स्थिरता शान्ति प्रापती, स्वपर प्रकाशक निराधार निर्धारजो; संयम पुष्पे पूजो आतमरायने, तेथी पामो नवसागरनो पारजो. रागद्वेषी बहिरातपद जाणीने,
ज्ञाना० १
ज्ञाना० २
ज्ञाना०