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घोदीघाल्या चाख्या के मशाणजो. चार० २ मरमी मूबो चमचम करता चालता, मगरुरीमा बोले करुवा बोलजो; राम रमीग्या पर रमणीना रागमां, पाप पुण्यनो थाशे प्रन्ते तोलजो. चारण ३ खाते हाथे जे न नमाने कागको, कृपण एवा अन्ते चाल्या जायजो, दान पुण्य करशे ते धावे साथमां, अन्ते पामर पाप करी पस्तायजो. चार० ४ बीठलीने दर्पणमां शुं देखतो, मुख बायामिषे मृत्यु देखायजो; एवं जाली चेतो चेतन चित्तमां, दाथे ते साथे परजवमां थायजो चारण ५ महापण तारु धूलमां मलशे जीवमा, करजे दीलमां देवगुरु विश्वासजो; बुद्धिसागर धर्म जगत्मां सार बे, धर्मध्यानथी होवे शिवपुर वासजो चार० ६
साणंद.
वैदर्भी वनमां वलवले - ए राग.
॥ पद १८७ ॥
चेतीले तुं प्राणिया, श्राव्यो अवसर जाय,
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