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खावे पीवे सहु करे, पण तद्रुप न थाय, नदयिक नावे जोग पण, निन्नपणुं वर्ताय. विघटे श्रेणि विकल्पनी, श्रथवा जो वर्ताय, तोपण तेथी जिन्न ते, भेद ज्ञान त्यां पाय. करो कल्पना कोटि पण, अगम्य नहि कल्पाय, सोऽहं सोऽहं ध्यानथी, नेद जाव मिट जाय. एए शास्त्रो पण शाक्षी नरे, ज्यांथी प्रगटयां एद, सिद्धाचल समरो सदा, निश्चय गुण गणगेह. १० असंख्य प्रदेश प्रातमा, ध्यावो गावो नाइ, अनुनविए जोगव्युं, ए पद स्थिरता लाइ. ११ am am मांहि समरीए, आत्म सदा सुखदाय, श्रातमरामे मन रमे, रुधि सब प्रगटाय. १२ सद्गुरु संगत दीनता, बाह्याचार प्रधान, अन्तर दृष्टि शून्यता, बहिरातम पद स्थान १३ जेने जेवी योग्यता, जाणे तेवुं जीव,
समजी सत्य स्वरुपमां, रमजो नवि सदीव. १४
श्री शान्तिः ३.
बोधपत्रम्. ५
बग ते सुधरे नहीं सुधरे नहि ते बग; आपोआप स्वनावमां, मूरख
मनतो झघमे,
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