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जटाजुट शिर धारके, कोन कान फरावे. जोग ३ उर्ध्वबाहु अधो मुखे, तन ताप तपावे; चिदानंद समज्या विना, गिणती नदि पावे.जोग०४
॥ पद १६४ ॥ साधु लाइ अपना रुप जब देखा. साधु करता कौन कौन फुनी करनी, कौन मागेगा लेखा;
साधु०१ साधु संगति अरु गुरुकी कृपातें मिट गइ कुलकी रेखा; आनंद घन प्रनु परचो पायो, नतर गयो दील नेखा.
साधु
॥ पद. १६५ राग आशावरी. ॥ प्रबधू बैराग्य बेटा आया, वाने खोज कुटुंब सब
खाया अब जेणे ममता माया खाइ, सुख दुःख दोनो नाश्; काम क्रोध दोनोकुं खाइ, खाइ तृष्णा बाइ. अ० १ धुर्मति दादी मत्सर दादा, मुख देखतही मूत्रा; मंगलरुपी बधाइ बांचो, ए जब बेटा हुवा. अ० २ पुण्य पाप पामोशी खाये, मान काम दोन मामा; मोह नगरका राजा खाया, पीचंही प्रेम ते गामा अ.२
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