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रेचक पूरक कुंजक सारी, मन इन्दिय जयकासी.मा.३ बिरता जोग युगति अनुकारी, आपोआप विमासी; श्रातम परमातम अनुसारी, सोजे काज समासी. म, ४
॥ सजाय १४१ ४
नमो नमो अरिहंतने, सिद्ध जजो चित्तध्यायी; श्राचारज नवकायने, साधु सकल सुखदायो. आतम तीन प्रकार बे, बाहिर अन्तर तेम परमनेद त्री जो ग्रह्यो, श्रय सुख लहो जेम.
॥ वीरप्रभु स्तवन ॥ भुजंगी बंद. १४२ ॥ नमो वीर विश्वे सदा सौख्यकारी; पिता मात जाता च दुःखापहारी; की देशना नव्य कल्याण जाणी, नमुं वीर प्रेमे बहु प्यार प्राणी. कह्यो मुक्ति मार्ग क्रिया ज्ञान नेदे, ग्रही नव्य जीवो दुःख वृन्द बेदे. कह्यां य षड्धा सदा जे अनादि, नमुं नावश्री सत्य स्याद्वाद वादि.
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