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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ ॥ पढ़. ११७ ॥ प्रातम अनुभव कोइक पावे, पटवे सो परघर नहि जावे. श्रातम परघर नाच नचावत कुलटा, अंतर धन सब फोली खावे. आतम० १ स्वरुप प्रकाशी तिरोभावे, होवत जब सोहि प्राविजीने परमातम पद सोदि पिबाने, अंतर ज्योति शुइज गावे. प्रातमण् २ दोवत नदि जे कबहु न प्रगटे, प्रगटे सो सत्यरूप कहावे सद् वस्तु तीन कालमा होवे, सत्य नित्य चेतन परखावे. प्रातम ३ भातम मूल नवमां जटके, समरे तो नीजरूप लखावे; बुद्धिसागर शोधो घटमां, संत मुनीश्वर जाकुं ध्यावे. ४ माणसा. ॥ पद. ११० ॥ समजीले शाला मन मेरा, या संसार न कबहु तेरा; तेरा तेरी पासे नाइ, शोध्या विण अंतर अंधेरा. स. १ कोटियतन करो कबहुन नवतरो, श्रातमज्ञान विना नहि प्यारा; अनेकान्त प्रतमकी सत्ता, ध्यातां पावत सुख अपारा. श् बादिर जटके अन्तर मूल्यो, चंचळता मनकी नजनारा For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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