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पंचदसकम्मभूमिसु उप्पत्नं .सत्तरि जिणाण सयौं । विविहरयणाइवन्नो-वसोहिअं हरउ दुरिआई ।।९।। चउतीस अइसयजुआ अट्ठमहापाडिहेरकयसोहा । तित्थयरा गयमोहा झाएअव्वा पयत्तेणं ॥१०॥ ॐ वरकणयसंखविद्द ममरगयघणसन्निहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सव्वामरपूइअं वंदे स्वाहा ।।११।। ॐ भवणवइवाणवंतरजोइसवासी विमाणवासी अ । जे केवि दुठ्ठदेवा ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ।।१२।। चंदणकप्पूरेणं फलए लिहिऊण खालिअं पीअं । एगंतराइगहभुअसाइणिमुग्गं पणासेइ ॥१३।। इअ सत्तरिसय जंतं सम्मं मंतं दुवारि पडिलिहिअं । दुरिआरिविजयवंतं निभंतं निच्चमच्चेह ।।१४।।
हम नीचा अपना नाम नहीं होने देंगे । हम कभो सुबह को शाम नहीं होने देंगे । है नहि बन की कमी प्राण दे डालेंगे, हम अपने समाज को बदनाम नहीं होने देंगे ।
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