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देवीओ चक्केसरि अजिआ दुरिआरि कालि महकाली। अच्चुअ संता जाला सुतारयाऽसोअ सिरिवच्छा ।।९।। चंडा विजयंकुसि पन्नइत्ति निव्वाणि अच्चुआ धरणी। वइरुट्टाछुत्त गंधारि अंब पउमावई सिद्धा ॥१०॥ इअ तित्थरक्खणरया अन्नेऽवि सुरासुरी य चउहावि । वंतरजोइणिपमुहा कुणंतु रक्खं सया अम्ह ।।११।। एवं सुदिट्ठिसुरगण-सहिओ संघस्स संतिजिणचंदो । मझ्झवि करेउ रक्खं मुणिसुंदरसूरिथुअमहिमा ।।१२।। इअ संतिनाहसम्म-द्दिट्ठी रक्खं सरइ तिकालं जो । सव्वोवद्दवरहिओ स लहइ सुहसंपय परमं ।।१३।।
रिक्त लौटा है न कोई साधना के द्वार से हर समय सब कुछ मिला सबको इसी भंडार से साम्राज्य सारी सिद्धियों का है सुरक्षित सर्वथा फिर तुम्हीं वंचित रहो क्यों दिव्य निज अधिकार से छोडो अतीत भविष्य का इतिहास अब आगे बढो क्यों रुके हो साधना के क्षेत्र में आगे बढो ।
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