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ताण पुत्त सिरिइंदभूइ भूवलय पसिद्धो, चउदहविज्जा विविहरूव नारीरस विद्धो । विनयविवेकविचारसार गुणगणह मनोहर, सातहाथसुप्रमाणदेह् रूपहिं रंभावर ||३||
नयणवयणकरचरण जिणवि पंकज जळ पाडिय, तेजे ताराचंदसुर आकाश भमाडिय । रूवे मयण अनंग करवी मेल्ह्यो निरधाडोय, धीरिम मेरु गभीर सिंधु चंगिमचयचाडिय ॥४॥ पेखवि निरुवमरूव जास जण जंपे किंचिय, एकाकी कलिभीत इत्थ गुण म्हेल्या संचिय । अहवा निश्चे पुव्वजम्म जिणवर इणे अंचिय, रंभापउमा गौरीगंगरति विधिआ वंचिय ॥५॥ बुध गुरु कवि न कोई जसु आगल रहिओ, पंचसया गुणपात्रछात्र हिंडे परवरिओ । करे निरंतर यज्ञकर्म मिथ्यामतिमोहिय, इण छळ होशे चरण नाण दंसणह विसोहिय ||६|| वस्तुछंद - जंबूदोवह जंबूदीवह भरहवासंमि, खोणीतलमंडण मगधदेस सेणिय नरेस | वर गुब्बरगाम तिहां, विप्प वसे वसुभूइ सुंदरतसु भज्जा पुहवी सयलगुणगणरूवनिहाण | ताण पुत्त विज्जानीलो, गोयम अतिहि सुजाण ||७||
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