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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐतिहासिक घटनाए देकर यह बात सिद्ध करते तो हमारे राष्ट्रीय जीवन पर एक नई रौशनी पड़ती. लेकिन आपने ती कोई उदाहरण दिया ही नहीं है। इतिहास तो इस बात की गवाही दे रहा है कि विदेशीय लोगों के युद्ध हिन्दुओं के साथ ही हुये और उन्होंने उन पर ही विजय पाकर भारत पर अधिकार जमा लिया । बौद्ध धर्म तो विदेशियों के आने पहिले ही भारत से बाहर निकाल दिया गया था और जैन धर्म को हिन्दुओं ने कभी फूलने फलने ही नहीं दिया । जब कभी इसकी वृद्धि हुई तो हिन्दू राजाओं ने अपनी सनातनी धर्म प्रजाकी सहायता से इसका विरोध किया और उसे न बढ़ ने दिया । जिस समय हिन्दुस्तान में मुसलमान आये उस समय हिन्दु धर्म का ही बोल बाला था, जैनों की अवस्था गिरी हुई थी। जब तक कोई ईतिहासिक प्रमाण न हो तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि जैन धर्म, भारतका अधःपात का एक कारण है। हमें अपनी हीन दीन दशा का दोष किसी धर्म या जाति के मत्थे नहीं मढना चाहिये । इससे आपस में फूट होती है और मेल की जड़ कटती है । मुझे आशा है कि योग्य लेखक महाशय कृपाकर इन सब बातों का संशोधन पुस्तक के दूसरे संस्करण में कर देंगे। २-श्रीयुत कश्यप महोदय “श्री शारदा-जबलपुर" के श्रावण १९८० के अंक में उक्त पुस्तक की विस्तृत समालोचना करते हुए जैनधर्म से संबंध रखने वाले आक्षेपों के विषय में यों लिखते हैं: " जैनधर्म के संबंध में लालाजी ने कुछ ऐसे मत प्रकट किये हैं जिन पर अभी हाल में जैनियों में असंतोष फैला है। सामयिक पत्रों में इसकी कुछ चर्चा थी। उनमें से कुछ श्री बानगी यह है: " जैन स्पष्ट रूप से ईश्वर के अस्तित्व से इनकार करते पृष्ठ १३० । वास्तव में जैनी ईश्वर के अस्तित्व से इन. नहीं करते परन्तु वे उसे विश्व का सृष्टिकर्ता नहीं For Private And Personal Use Only
SR No.008619
Book TitleLala Lajpatray Ane Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages115
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & History
File Size7 MB
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