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१४ ओनी सहाय छंडीने समकिती देवदेवीओनी सहायपामी शके-सम्म. दिही देवा दितु समाहिंच बोहि च (वंदितासूत्र) ए वाक्यथी श्रावकोए सम्यग्दृष्टि देवोने का छे के हे सम्यग्दृष्टि देवो ! अमने समाधि अने बोधि-समकित आपो. सम्यग्दृष्टि गृहस्थ जैनो सम्यग्दृष्टि देवदेवीना गुणोनुं स्तवन करी तेओनी द्रव्यपूजा करी शके छे. अष्टादश दोष रहित परमात्मा महावीर जिनेश्वरना सम्यग्दृष्टि देवो भने देवीओ सेवको छे अने ते जैनशासननी प्रभाचनामां मदत करे छे. तेमने साधर्मिक समकितदृष्टि देव तरीके मानवा पूजवामां दोष नयी. चक्रेश्वरी पद्यावती, माणिभद्र वगेरेनी देरासरोमां श्रावको पूजा करे छे तेम घंटाकर्ण वीरनी मूर्ति आगळ तेनी स्तुति करी तेनुं पूजन कर, ए जैन शासननी सेवा करनार देवनी भक्ति छे.
पूजा भणाक्नारामओए बानी मुनि वगेरेनी सेवा भक्ति करीने तेओनी पासेथी दरेक पूमाना अर्थ धारवा. दरेक पूजाना रागने धारवा. पूजाने सारी पेठे गातां शीखवू. पूनानां साहित्य तरीके जे जे वाणित्र योग्य लागे ते वगाडतां शीखवू, जे पूजा भणाववानी होय तेनो भावार्थ प्रथमथी समनी लेवो. एक सरखी रीते सर्व गा. नाराओए तालबद्ध गावु. मुखे खेसनो छेडो राखवो पूजा एक स. रस गानार उपाडे अने बीजा पाछळ ते पद्य गाय, वच्चे कोइ जासनी गरवड थवा न दे, वच्चे आडी अवळी वातो न करे, प्रभुना सन्मुख दृष्टि राखे, जे पूजामां जेवो भाव होय तेवो परिणाम धारण
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