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जेन सूक्त ० ॥ ४७॥
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ते पासे सव्वसो छित्ता निहन्तूण उवायओ । मुक्कपासो लहुब्भूओ, विहरामि अहं मुणी ॥ ५ ॥ रागद्दोसादओ तिब्बा, नेहपासा भयंकरा । ते छिंदितु जहानायं, विहरामि जहकम्मं ॥ ६ ॥ तो हियसंभूया या चिह्न गोयमा । फलेड़ विसभक्खीणं सा उ उद्धरिया कहं ॥ ७ ॥ तं लयं सव्वसो छित्ता उद्धरिता समूलियं । विहरामि जहानायं मुकोमि विसभक्खणं ॥ ८ ॥ भवता लया बुता भीमा भीमफलोदया । तमुच्छितु जहानायं विहरामि महामुगी ॥ ९ ॥ संपलिया घोरा, अम्मी चिह्न गोयमा जे डति सरीरत्था कहूं विज्झाविया तुमे ॥ १० ॥ महामेहप्पसूयाओ गिज वारि जलुत्तमं । सिचामि सययं तेउ, सित्ता नो व डर्हति मे ॥ ११ ॥ कसाया अग्गिणो वृत्ता सुयसीलतवो जलं । सुयधाराभिहया संता भिन्न हु न दर्हति मे ॥ १२ ॥ अयं साहस्सिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिधावइ । जंसि गोयम आरूढो, कहं तेण न हीरासि ॥ १३ ॥ अथ एगो महादीवो, वारिमज्झे महालओ । महाउदगवेगस्स, गई तत्थ न विजई ॥ १४ ॥ जरामरणवेगेणं बुज्झमाणाण पाणिगं । धम्मो दीवो पट्ठा य गई सरणमुत्तमं ।। १५ । अण्णवंसि महोहंसी, नावा, त्रिपरिधावई । जंसि गोयम आरूढो कहूं पारं गमिम्ससि ॥ १६ ॥ जा उ अस्साविणी नावा न सा पारस्स गामिणी । जा निरस्साविणी नावा, सा उ पारस्स गामिणी ॥ १७ ॥ सरीरमाहु नावति, जीवो वुच्च नाविओ। संसारो अप्णय वृत्तो, जं तरन्ति महेसिणो ॥ १८ ॥ अन्धयारे तमोघोरे, चिट्ठन्ति पाणिणो बहु । को करिस्सह उओयं सव्वलोगंमि पाणिणं ॥ १९ ॥
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नवकारसूत्रम्
॥ ४७ ॥