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सचित्र जैन कथासागर भाग
६०
वध कराने का निश्चय कर लिया ।
राजा और शारदानन्दन अपने-अपने स्थान पर चले गये परन्तु जाते-जाते राजा ने मंत्री को बुला कर आज्ञा दी कि 'शारदानन्दन का सिर काट डालो। इस आदेश के क्रियान्वयन में तनिक भी विलम्ब न हो ।'
बहुश्रुत मंत्री दूरदर्शी था। उसने सोचा, 'राजा मनस्वी होते हैं। वे शीघ्रता में जो कुछ कहते हैं वह सब मान्य नहीं किया जाता। आज उनमें क्रोध का आवेश है अतः वे इस प्रकार कह रहे हैं। कल जब क्रोध का वेग कम होगा तब उन्हें अपनी भूल समझ में आयेगी । शारदानन्दन जैसे विद्वान की हत्या करने के पश्चात् वैसा बुद्धिमान व्यक्ति फिर खोजने से थोड़े ही मिलेगा ?' मंत्री ने शारदानन्दन को बुलाया और राजाज्ञा की बात कही। उन्हें अपने प्रासाद के तलघर में गुप्त रूप से रखा। दूसरे दिन राजा को कहा, 'मैंने आपके आदेश का पालन कर दिया है।' रानी के प्रेमी का वध होने की बात मान कर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ ।
(३)
I
एक बार राजकुमार विजयपाल शिकार खेलने गया और उसने एक शूकर का पीछा किया । शूकर आगे और राजकुमार पीछे दौड़ता-दौड़ता राजकुमार एक जंगल में आ पहुँचा। उसके सब साथी उससे दूर रह गये । सूर्यास्त हो गया। चारों ओर पक्षियों का कलरव होने लगा । तनिक रात्रि होते ही वहाँ शेर चीतों की दहाड़ सुनाई देने लगी । राजकुमार एक वृक्ष के समीप आया और हिंसक पशुओं से बचने के लिए वह वृक्ष पर चढ़ गया। इतने में एक व्यन्तराधिष्ठित वन्दर बोला, 'राजकुमार ! यह वन भयानक है। तू ऊपर चढ़ गया यह ठीक किया। देख नीचे ही बाघ खड़ा है।' राजकुमार ने बाघ को देखा। देखते ही वह काँपने लगा, परन्तु तत्पश्चात् बन्दर द्वारा साहस दिये जाने पर वह स्थिर हुआ । रात्रि बढ़ने लगी राजकुमार को नींद आने लगी, तब बन्दर ने कहा, 'कुमार तू अभी मेरी गोद में सो जा । मैं तेरी रक्षा करूँगा। दूसरे प्रहर में मैं सोऊँगा और तू मेरी रक्षा करना । हम दोनों के जगते रहने का क्या काम है?"
राजकुमार भूखा था और थका हुआ था । अतः वह बन्दर की गोद में सिर रख कर गहरी नींद में सो गया। कुछ समय के पश्चात् बाघ बोला, 'बन्दर ! इस राजकुमार को तू मुझे दे दे । यह मेरा भक्ष्य है । मनुष्य का अधिक विश्वास मत रख।'
वन्दर ने कहा, 'मैं उसे नहीं सौंप सकता । वह मेरे विश्वास पर मेरी गोद में सोया है । मैं तुझे कैसे सौंपूँ ?
एक प्रहर व्यतीत हो गया। राजकुमार जग गया, अतः बन्दर राजकुमार की गोद में सिर रख कर सो गया। जब बन्दर खर्राटें लेने लगा तव बाघ बोला, 'राजकुमार !
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