SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (४) परिहास कथा (५) संकीर्ण कथा - कहते है. www.kobatirth.org VI (२) खंड कथा संक्षिप्त कथावस्तु वाली कथा को खंड कथा कहते है. (३) उल्लापकथा - समुद्रयात्रा या साहसपूर्ण किया गया प्रेम निरुपण जिसमें हो उल उल्लापकथा कहते है. - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हास्य एवं व्यंगात्मक कथा को परिहास कथा कहते है. जिसमें कथा के अन्य तत्त्वों का प्रायः अभाव हो उसे संकीर्ण कथा इस प्रकार कथाओं के विभिन्न प्रकार उपलब्ध होते है. उन सबमें कर्मबन्ध करने वाली. रागद्वेप की वृद्धि करने वाली कथाएँ त्याज्य वताई गई है. धर्म कथा को ग्राह्य बताई गई है. इन धर्म कथा के श्रवण से जीव अपने पूर्ववद्ध कर्मों को नष्ट कर के आत्म विकास कर सकता है. करीव २५०० वर्ष पूर्व युनानी दार्शनिक सोक्रेटिसने कहा है कि कथावार्त्ताओं के श्रवण से मानव अपने भावावंशों का विरंचन याने शुद्धीकरण करता है और उससे यह सामथ्यं प्राप्त है तत्पश्चात सुखानुभव होता है. अतः कथाओंका श्रवण निरंतर करना चाहिए. चरम शासनपति परमात्मा महावीर स्वामी को धर्मकथा के विषय में पूछा गया प्रश्न एवं उत्तर इस प्रकार है करता धम्म कहाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? धम्मकहाए णं निज्जरं जणयइ, धम्म कहाए णं पवणं पभावेइ, पवयण पभावे णं जीवे आगमिसस्स भद्दत्ताए कम्मं निबन्धइ (उत्तरा. २९/२८) अर्थात् हे भगवन्त ! धर्म कथा से जीव क्या प्राप्त करता है? उत्तर धर्म कथा से निर्जरा होती है, जिन प्रवचन की प्रभावना होती है, प्रवचन की प्रभावना करने वाला जीव भविष्य में कल्याणकारी फल देने वाले कर्मों का अर्जन करता है. यहाँ यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अन्य कथाओं की तरह धर्मकथा न केवल मनोरंजन करने या कालक्षेप करने के लिए ही है अपितु धर्मकथा का श्रवण-मनन- वांचन जीवन की शुद्धि का एक अपूर्व साधन भी है. कथावार्त्ताओं से मानव जीवन का विकास होता है. श्रवण एवं पठन से जीवन में रस पैदा होता है पुण्य का अर्जन होता है पाप का नाश होता है. जीवन में सदाचार स्थिर होता है और असदाचार का नाश होता है. मलीन भावों के दुष्ट परिणामों के ज्ञान से निवृत्त होता है एवं शुभ भावों के आचरण से लाभ होता है यह जानकर उसमें प्रवृत्त होता है. सन्मार्ग में उत्साह पैदा होता है. मैत्री आदि शुभ भावोंका भी उद्भव होता है. क्रोधादि कपायों का नाश होता है. इस प्रकार धर्मकथाए जीवन में अनेक प्रकार से उपयोगी है. इसीलिए महान् जैनाचार्यों ने एक ओर उच्च कोटी के शास्त्र ग्रंथों का निर्माण किया वही दूसरी ओर लोकभांग्य, सरल एवं सुवोध भाषा में उपदेशात्मक कथा साहित्य का भी निर्माण किया है. जैन कथा साहित्य का संक्षिप्त इतिहास का अवलोकन आवश्यक है. जैन धर्म के मूल शास्त्र ग्रंथ आगम है. आगम ग्रंथों में जहाँ दर्शन, सिद्धान्त, भूगोल, खगोल आदि विषय का विवेचन प्राप्त होता है वहीं धर्मकथाओं का संग्रह भी प्राप्त होता है. ज्ञाताधर्मकथा नामक अंग आगम में अनेक कथाओं का संग्रह प्राप्त होता है. उसमें अनेक उपदेशात्मक रूपक कथाएँ भी है. जो साधक को प्रेरणा एवं वल प्रदान करती है. उसके अतिरिक्त उपासक दशांग सूत्र एवं उत्तराध्ययन और नंदीसूत्र भी रोचक कथाएं मिलती है. प्रस्तुत कथा तत्कालीन सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थिति का ही निर्देश नहीं करती किन्तु तत् तत परिस्थितिओं में साधक आत्मा को अपनी साधना में कैसे स्थिर रहना चाहिए उसका स्पष्ट For Private And Personal Use Only
SR No.008588
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhranjanashreeji
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy