SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गृहस्थ होते हुए भी ब्रह्मचारी एवं आहार करते हुए भी उपवासी अर्थात् सूर एवं सोम का वृत्तान्त ५५ (३०) गृहस्थ होते हुए भी ब्रह्मचारी एवं आहार करते हुए भी उपवासी अर्थात् सूर एवं सोम का वृत्तान्त (१) सूर एवं सोम दोनों सगे भाई थे। सूर बड़ा था और सोम छोटा । सूर राजा था, सोम युवराज था । एक दिन श्रावस्ती नगरी में धर्मवृद्धि नामक आचार्य महाराज का पदार्पण हुआ। उनकी देशना श्रवण करके सोम को वैराग्य हो गया और उसने दीक्षा ग्रहण कर ली। ___ अल्प काल में ही सोम मुनि ने ग्यारह अंग आदि शास्त्रों का अध्ययन किया और उन्होंने तप से अपनी देह को अशक्त कर दिया और साथ ही साथ उन्होंने अपने मन को भी अनासक्त बना दिया। राजा सूर राज्य का संचालन करते हुए प्रजा का पालन करने लगे, परन्तु उनका मन तो सोम के संयम के अनुमोदन में ही था। (२) _ 'राजन! उद्यान में राजर्षि सोम का आगमन हुआ है' उद्यान पालक ने आकर राजा को सूचना दी। राजा, रानी तथा समस्त परिवार उद्यान में गये और मुनिवर की देशना श्रवण करके लौट आये। रानी ने उस समय ऐसा अभिग्रह ग्रहण किया कि जब तक राजर्षि सोम यहाँ रहेंगे तब तक उनको वन्दन किये बिना मैं आहार ग्रहण नहीं करूँगी। (३) नगरी एवं उद्यान के मध्य एक नदी थी, जो वर्षा ऋतु में तो पूर्ण वेग से बहती परन्तु अन्य ऋतुओं में छिछली रहती। उस दिन रात्रि में घोर वृष्टि हुई, नदी पूर्ण वेग से बहने लगी। रानी ने राजा को अपने अभिग्रह की बात की कि 'स्वामि! अब क्या करेंगे? नदी तो पूर्ण वेग से बहती होगी, सामने किनारे कैसे जायेंगे?' राजा ने कहा, 'घबराओ मत । तुम नदी पर जाओ और तट पर खड़ी रह कर For Private And Personal Use Only
SR No.008588
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhranjanashreeji
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy