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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चार नियमों से ओत प्रोत बंकचूल की कथा दिन व्यतीत होते गये । वंकचूल अव चोरी आदि करता था फिर भी उसे गुरुदेव द्वारा दिये गये नियमों पर अटूट श्रद्धा थी। इस बीच में उन आचार्यश्री के शिष्य वहाँ होकर निकले । वंकचूल ने उन्हें आग्रह पूर्वक रोका और कहा, 'भगवन्! आप मेरे सच्चे उपकारी हैं। आप द्वारा दिये गये नियम नहीं होते तो मैं कहीं का नहीं रहता।' गुरु ने कहा, 'भाग्यशाली! जिनशासन का प्रभाव उत्तम है । तुम्हारी पल्ली का स्थान सुन्दर है । यहाँ तुम एक सुन्दर जिनालय का निर्माण कराओ तो उसकी शीतल छाया से तुम्हारा कल्याण होगा।' __वंकचूल के पास धन का अभाव नहीं था। उसने भव्य जिनालय का निर्माण कराया जिसमें भगवान महावीर की भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित की। कुछ ही समय में वह स्थान एक तीर्थ यात्रा-स्थल बन गया। ___ एक वार चर्मणवती नदी में नाव में बैठ कर एक वणिक् एवं उसकी पत्नी यात्रा करने आये। दूर से जिनालय का शिखर देख कर उसकी पत्नी स्वर्ण-कटोरी में चन्दन आदि लेकर तीर्थ की अर्चना करने लगी। इतने में कटोरी हाथ में से छूट कर नदी में गिर पड़ी। वणिक् वोला, 'भद्रे! वहुत दुरा हुआ । यह कटोरी हमारी नहीं थी। यह तो राजा STAR AALO HTML MITHAN Man वंकचूल ने अपनी लक्ष्मी एवं ऐश्वर्य को सफल बनाने के लिए परलोक में भी धर्म प्राप्ति के लिए भव्याति-भव्य जिनमंदिर बनवाया, भव्य जिनमूर्ति की उपकारी आचार्य भगवंत द्वारा प्रतिष्ठा करवाई. For Private And Personal Use Only
SR No.008588
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhranjanashreeji
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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